हनुमान जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन अंजनी पुत्र बजरंगबली का जन्म हुआ था। इस दिन हनुमान जन्मोत्सव और हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि हनुमान जयंती पर बूंदी का भोग लगाने से और जरूरतमंद लोगों को प्रसाद खिलाने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। हनुमानजी के बहुत से भक्त इस दिन व्रत भी रखते हैं और विधि विधान से पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन हनुमानजी के जन्म की कथा का पाठ करने से आपका व्रत पूर्ण होता है और आपको हनुमानजी की विशेष कृपा मिलती है। आइए जानते हैं हनुमान जयंती की व्रत कथा।
एक बार अग्निदेव से मिली खीर को राजा दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को बांट दिया। कैकयी को जब खीर मिली तो चील ने झपट्टा मारकर उसे छीन लिया और उसे अपने मुंह में लेकर उड़ गई। उड़ते-उड़ते रास्ते में जब चील अंजना माता के आश्रम के ऊपर से गुजर रही थी तो माता अंजना ऊपर की ओर देख रही थी और उनका मुंह खुला होने की वजह से खीर उनके मुंह में गिर गई और उन्होंने उस खीर को गटक लिया। इससे उनके गर्भ में शिवजी के अवतार हनुमानजी आ गए और फिर उनका जन्म हुआ।
हनुमान जयंती की व्रत कथा 2 हनुमानजी के जन्म के विषय में दूसरी कथा यह है कि समुद्रमंथन के बाद जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु का मोहिनी रूप देखने को कहा था जो उन्होंने समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों को दिखाया था। उनकी बात का मान रखते हुए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी आकर्षित होकर कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्य गिरा दिया। जिसे पवनदेव ने शिवजी के वानर राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इस तरह माता अंजना के गर्भ से वानर रूप में हनुमानजी का जन्म हुआ। उन्हें शिव का 11वां रूद्र अवतार माना जाता है।