वाल्‍या डाकू से वाल्‍मकि ऋषि बनने की कहानी

Updated on 01-01-1970 12:00 AM


बालमित्रो आप वाल्‍मीकि ऋषि को तो जानते ही होंगे । वह एक महान ऋषि थे तथा उन्‍होंने महाकाव्‍य रामायण की रचना की थी अर्थात रामायण लिखी थी । वाल्‍मीकि ऋषि का नाम रत्नाकर था । रत्नाकर ऋषि बनने से पहले एक बहुत क्रूर डाकू था, वह घने जंगल में छुपकर बैठता था । जंगल से आने-जानेवाले राहगीरों को रोककर उनकी धन-संपत्ति लूट लेता था तथा उन्‍हें मार डालता था और उस संपत्ति से अपनी पत्नी, बच्‍चों का भरण-पोषण करता था । प्रतिदिन शाम को उसकी पत्नी और बच्‍चे उसकी राह देखते थे कि उन्‍हें पहनने को आभूषण और खाने के लिए मिठाईयां और अच्‍छे-अच्‍छे व्‍यंजन मिलेंगी । उनके आने पर घर के सभी सदस्‍य उनका प्रेम से स्‍वागत करते थे । जब लोगों के ध्‍यान में आया कि यह रास्‍ता ठीक नहीं है, यहां डाकू रहते हैं, तो फिर धीरे धीरे लोग उस मार्ग से जाने से कतराने लगे, वे डरते थे कि कहीं डाकू उन्‍हें मार ना डाले । रत्नाकर को लोग वाल्‍या डाकू के नाम से जानते थे ।

एक दिन नारदमुनि हाथ में वीणा लिए ‘नारायण-नारायण’ का जाप करते हुए जंगल से निकल रहे थे । वाल्‍या डाकू वहीं जंगल में छुपकर बैठा हुआ था तथा यात्रियों की प्रतीक्षा कर रहा था, जिससे वह उन यात्रियों को लूट सके तथा आज अपने परिवार का भरण-पोषण कर पाए । नारद मुनि के शब्‍द वाल्‍या के कानों तक पहुंचे, वह उन्‍हें लूटने के उद्देश्‍य से उनके सामने पहुंच गया । उसके हाथ में उन्‍हें मारने के लिए तलवार थी । उसने नारदमुनि को लूटने के लिए रोका और कहा कि तुम्‍हारे पास जो भी है, वह मुझे दे दो और तभी तुम आगे जा सकोगे । नारदमुनि ने उसे देखा और शांति से हंसते हुए कहा कि ‘‘यह देखो !’’ मेरे हाथ में वीणा और मुख में हरीनाम के अलावा मेरे पास कुछ भी नहीं है । इसपर वाल्‍या डाकूने अपने हाथ की तलवार उठाई और कहा कि, जो है वह सब दे दो नहीं तो तुम्‍हारी गर्दन उडा दूंगा । इसपर थोडा भी गुस्‍सा न कर, नारद मुनि ने कहा कि, ‘अरे मेरी गर्दन खुशी से उडाओ परन्‍तु उसके पूर्व मेरे एक प्रश्‍न का उत्तर तो दे दो ।’

नारद मुनि का शांत, आनंदी मुख देखकर वाल्‍या डाकू भी थोडा विचलित हो गया और बोला, ‘ठीक है, पूछो !’ इसपर नारद मुनि ने उससे कहा कि यह जो तुम लुटपाट करते हो, इसके कारण तुम्‍हे बहुत पाप लगेगा । उस पाप के कारण तुम्‍हें बहुत दु:ख भोगने पडेंगे तो तुम यह सब क्‍यों करते हो ? उसपर रत्नाकर (वाल्‍या)ने उत्तर दिया कि, मै यह सब अपनी पत्नी और बच्‍चों के पेट भरने के लिए कर रहा हूं । इसपर नारद मुनि ने कहा, जिनके लिए तुम यह पाप कर रहे हो, वह तुम्‍हारी पत्नी और बच्‍चे क्‍या तुम्‍हारे इस पाप का आधा फल भोगने हेतु तैयार हैं ? इसपर रत्नाकर बोला, हां उनके लिए ही तो मैं यह सब करता हूं, तब वे तो इस पाप का आधा फल तो भोगेंगे ही ! नारद मुनि ने कहा, ‘तुम पहले घर जाओ और उनसे पूछों कि वे तुम्‍हारे पाप का आधा फल भोगेंगे अथवा नहीं । यह सुनकर रत्नाकर (वाल्‍या)ने थोडा विचार किया और कहा कि जब तक मैं घर से इस प्रश्‍न का उत्तर नही लेकर आता तब तक तुम यहीं पर रहना और कहीं भागने की कोशिश न करना । वह अपने घर की ओर चल दिया । घर जाकर उसने अपने पत्नी-बच्‍चों से पूछा कि, मैं प्रतिदिन तुम्‍हारे लिए लोगों को लूटता हूं, मारता हूं इसके कारण मुझे जो पाप लगनेवाला है, क्‍या उस पाप का आधा फल तुम भोगने के लिए तैयार हो ? यह सुनकर प्रतिदिन रत्नाकर का प्रेम से स्‍वागत करनेवाले पत्नी-बच्‍चे उस पर गुस्‍सा होकर बोले, ‘हमारा भरण-पोषण करना तुम्‍हारा कर्तव्‍य है । हमने तो तुम्‍हे पाप करने को नहीं कहा था, तुम ही अपने मन से यह सब करते हो, तो इस पाप को तुमको ही भोगना पडेगा । हम इस पाप का आधा फल क्‍यों भोगें ?

यह सुनकर रत्नाकर निराश हो गया । जिनके लिए मैनें इतने पाप किए, वे ही मेरे पाप में सहभागी होने के लिए तैयार नहीं है । वह दौडता हुआ जंगली की ओर आया और नारद मुनि के पैर पकडकर रोने लगा । वह बोला, ‘मुनिवर, मुझे क्षमा करें, मेरे घर वालों ने मेरे पाप में सहभागी होने से मना कर दिया है । मुझसे तो बडी भूल हो गई । मेरी गलतियों के लिए मुझे क्षमा करें, मुझे इस पाप से मुक्‍त होने का योग्‍य मार्ग आप ही बताएं । नारद मुनि ने उसकी पीठ पर प्रेम से हाथ फेरा और उसे उठाया । उन्‍होंने कहा कि ‘तुम श्रीराम के नाम का जप किया करो । ‘राम राम’ बोला करो । इस नाम से तुम्‍हारे सारे पाप धुल जाएंगे और तुम्‍हारे सारे दुःख नष्‍ट हो जाएंगे । नारद मुनि का कथन सुनकर वाल्‍या डाकू ने उनसे आशीर्वाद लिया और वह राम नाम का जप करने लगा । वाल्‍या डाकू ने इतने पाप किए थे कि वह प्रभु श्रीराम का नाम भी ठीक से नहीं ले पा रहा था । ‘राम-राम’ कहने की बजाए उसके मुख से मरा मरा शब्‍द ही निकलता था । वह दिन रात प्रभु श्रीराम के नाम के जप की बजाए मरा-मरा ही जप करने लगा । इस प्रकार मरा-मरा बोलते-बोलते उसके मुख से राम-राम का नाम निकलने लगा । ऐसे राम नाम जपते जपते १२ वर्ष बीत गए; परंतु वाल्‍या डाकू अपने स्‍थान से थोडा भी नहीं हिला, वह अपनी सुध-बुध भूल गया । वह राम नाम के जप में इतना मग्‍न हो गया था कि, उसके शरीर पर चीटियों ने बांबी बना ली थी अर्थात चींटियों ने अपना घर बना लिया था और उसे पता भी नहीं चला ।
बहुत समय बीतने के बाद एक दिन क्‍या हुआ कि जब नारद मुनि उस जंगल से निकल रहे थे, तब उन्‍हें चीटियों की बांबी से ‘राम-राम’ की आवाज सुनाई दी । उन्‍हें बहुत आश्‍चर्य हुआ । वह तुरंत वहीं रुक गए और सोचने लगे कि यह आवाज इस चीटियों की बांबी से क्‍यों आ रही है । उन्‍होंने बांबी की मिट्टी हटाई, तब उन्‍हें रामनाम में मग्‍न रत्नाकर दिखाई दिया । रत्नाकर को देख उन्‍हें बहुत आनंद हुआ । उन्‍होंने धीमे से रत्नाकर को पुकारा । रत्नाकरने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोली तो उसने अपने सामने नारदमुनि को देखा और उसे बहुत आनंद हुआ । उसने उनके पैर पकडे और उनकी आंखों से अंश्रु की धारा बहने लगी जिससे उनके चरणों का अभिषेक हो गया । नारद मुनि ने उनको उठाया और शांत करते हुए कहा कि ‘उठो ! अबसे तुम डाकू रत्नाकर नहीं, अबसे सारे लोग तुम्‍हें वाल्‍मीकि ऋषि के नाम से जानेंगे ।’ आगे जाकर वे वाल्‍मीकि ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हो गए । बच्‍चो वाल्‍मीकि ऋषि के उस रामायण का आदर्श हम सभी अपने जीवन में मानते हैं ।

बालमित्रो आपने देखा ना कि ईश्‍वर का नाम जपने से किस प्रकार एक डाकू के सभी पाप नष्‍ट हो गए और वह ऋषि बन गया । हमें भी इसी प्रकार ईश्‍वर का नाम अर्थात नामजप करना चाहिए । नामजप करने से हमारे पाप नष्‍ट होते हैं ।



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