अर्जुन एक बार रामेश्वरम पहुंचे, जहाँ एक वानर श्रीराम की भक्ति में लीन था, अपनी धनुरविद्या के अहंकार में मग्न पार्थ ने वाण चलाया, तब हनुमान जी नें प्रकट हो कर इस कृत्य का कारण पूछा, तो अर्जुन बोले की श्री राम तो धनुर्धर थे, उन्हें पत्थरों के पूल की आवश्यकता क्या पड़ी? वाणों का ही पूल बना लेते, पूरी सेना त्वरित गति से लंका जा पहुँचती, इस पर हनुमान जी नें कहा, की हमारी सेना में ऐसे विराट और बलशाली योद्धा थे जिनका भार वाण का पूल नहीं उठा पाता, इसी लिए पत्थरों का पूल बनाया गया। इस बात पर अर्जुन नें दिव्य वाण चला कर विशाल पुल का निर्माण कर दिया और वानर रूप में छिपे हनुमान जी को चुनौती दे दी। तब हनुमान जी उस पर चढ़े और वाणों का पूल भरभरा कर पानी में डूब गया। अंत में अर्जुन का अहंकार टुटा और हनुमान जी नें उसे दर्शन भी दिए।