श्री कृष्ण की कृपा छाया में पांचों पांडव धर्म युद्ध लड़ने वाले थे। लेकिन उसके पहले उन्हें कौरवों ने खूब सताया, लाक्षागृह, वनवास और जुआ कपट इसी के हिस्से थे, वनवास के दौरान भीमसेन भाइयों से रुठ कर घने जंगल की और भ्रमण करने निकल गये, जहाँ रास्ते में एक वृद्ध वानर अपनी पूंछ पसारे बैठा था। क्रोध में आग बबूले भीम नें पूंछ उठाने को कहा, तब निर्बल वानर नें थकान और अपनी असमर्थता का हवाला दे कर भीम को ही यह कार्य कर देने को कहा, भीम ने खूब हाथ पैर मारे, लेकिन वानर की पूंछ टस से मस नहीं हुई। अंत में भीम को यह भास् हुआ की वह कोई दिव्यात्मा है। भीम ने दर्शन देने को कहा तब, हनुमान जी नें अपना असल रूप दिखाया, और पांडव पक्ष को विजय का आशीर्वाद भी दिया।