नारद जी ने ऋषिगण की आवभगत करने का कार्यभार हनुमान जी को सौंपा, लेकिन इन सब में से राम के गुरु विश्वामित्र का सत्कार न करने को कहा, हनुमान जी इस रहस्य को समझ नहीं पाए, लेकिन उन्होंने नारदजी की आज्ञा का पूर्णतः पालन किया।
जिस के फल स्वरूप विश्वामित्र क्रोधित हुए और राम को हनुमान को मृत्यु दंड देने को कहा, गुरु की आज्ञा से विवश राम अपने प्रिय हनुमान पर प्रहार करना शुरू करते हैं, लेकिन नारद जी ने कहा था कि, हनुमान आप चिंतामुक्त हो कर राम नाम का जाप करें कुछ नहीं होगा, हनुमान जी ने इस आज्ञा का भी पालन किया, तब राम के ब्रह्मास्त्र समेत सारे अस्त्र विफल हो गए। यह सब देख कर गुरु विश्वामित्र ने राम से इस घटना का विस्तारण जाना, और अंत में हनुमान जी पर से उनका क्रोध समाप्त हो गया। और उन्होंने अपना आदेश वापिस ले लिया।