अर्जुन और कर्ण में भयंकर युद्ध चल रहा था। कर्ण के कुछ वाण श्री कृष्ण को भी लगे, जिस से उनका कवच टूट गया, यह सब देख हनुमान जी नें प्रचंड गर्जना की, उनके आग्नेय नेत्र कर्ण को ऐसे घूर रहे थे जैसे अभी उसे भस्म कर देंगे। हनुमान जी की मुट्ठियाँ कस चुकी थीं, उनकी पूंछ काल बन कर हवा में लहराने लगी, यह सब देख कर कर्ण और उनके सारथि थर थर कांपने लगे, अंततः श्री कृषण ने हनुमान को शांत कराया, और कर्ण की जान में जान आई।